राजेश गोवर्धन के काले कारनामों का काला इतिहास फर्जी बिल से आक्सिजोन में करोड़ों का फर्जीवाड़ा,,,
अलताफ हुसैन
7869247588
रायपुर ई ए सी कॉलोनी स्थित आक्सिजोन में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा को अंजाम दिया जा रहा है निर्माण सामग्री खरीदी सहित पेड़ पौधों की खरीदी में वन विकास निगम के कई बडे स्तर के उच्च अधिकारी इस फर्जीवाड़े में संलिप्त है फर्जीवाड़ा,भ्रष्टाचार, और गड़बड़ घोटाले के इस खेल में यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि निगम में बैठे उच्च अधिकारियों पर प्रशासनिक स्तर पर ऊपर बैठे अधिकारी का वरदहस्त प्राप्त है जिसकी वजह से उक्त फर्जीवाड़े पर किसी प्रकार की कोई भी कार्यवाही नही होने से तथा कथित निगम में बैठे शीर्ष अधिकारी के द्वारा बे खौफ होकर फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार,गड़बड़ घोटाला को अंजाम दिया जा रहा है जबकि आक्सिजोन के भ्रष्ट कार्य प्रणाली को लेकर फॉरेस्ट क्राइम समाचार पत्र द्वारा लगातार समाचार का प्रकाशन किया जाता रहा है और वर्तमान में शेष अंतिम सात एकड़ भूभाग में किए जा रहे आक्सिजोन निर्माण मे शासन द्वारा जारी सात करोड़ की एक मुश्त राशि मे भी भारी फर्जीवाड़ा और कमीशन खोरी का खेल खुलेआम जारी है फिर भी शासन प्रशासन पर बैठे अधिकारियों के सिर पर जूं तक न रेंगना एवं संलिप्त अधिकारीयों के ऊपर कोई कार्यवाही न करना अनेंक सवालों को जन्म दे रहा है आइए, इस अंक में हम पाठकों को ऐसे फर्जी खेल से जिसमे एक चहेते ठेकेदार के द्वारा निर्माण सामग्री का बिल तो लिया परन्तु सामग्री उसके द्वारा नही बल्कि स्वयं वन विकास निगम द्वारा कहीं और से मुफ्त में लाकर आक्सिजोन में उपयोग किया गया यानी...माले मुफ्त...दिले बेरहम..की तर्ज़ पर बिल तो किसी और से जारी करवाए गए और एक बड़ी राशि को फर्जीवाड़ा कर गबन कर बड़ी बेरहमी के साथ शासन के करोड़ो रूपये की क्षति पहुंचाई गई यही नही अधीनस्थ कर्मचारियों को भी इस फर्जीवाड़े और घोटाले में बिल बाउचर एवं विभागीय दस्तावेजों में सही हस्ताक्षर करवा कर उनकी संलिप्तता होने का भयादोहन कर उनसे जबरन कार्य एवं अन्य विभागीय दस्तावेजों में कूटरचना कर शासन को तो गुमराह किया ही जा रहा है साथ ही ऐसे कर्मचारी जो ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से कार्य करना चाहते है उनके भविष्य से भी खिलवाड़ किया जा रहा है क्योंकि अब चर्चा आम हो रही है कि आक्सिजोन निर्माण में कार्यरत विभागीय कर्मचारीयों में ऐसे स्वच्छ छवि वाले कर्मचारियों को ही रखा जाता है जो मौन रहकर प्रबंध संचालक श्री राजेश गोवर्धन की फरमाबरदारी करे तथा उनके भ्रष्ट काले कारनामों को देख कर भी आंख बंद कर ले जबकि कुछ कर्मचारी अधिकारी इसलिए सब कुछ जानकर मौन है कि प्रबंध संचालक उन्हें डमी की तरह इस्तेमाल कर रहे है तथा विरोध करने पर उनके द्वारा चरित्र प्रमाण पत्र (सी ए )पर कलम चलाकर जीवन भर के कार्यकाल में दाग न लगा दे इसलिए भी घुटन भरी सेवाएं देने विवश है कथन आशय यह है कि भ्रष्टाचार के इस खेल को देखकर न वे उगल सकते है और न ही निगल सकते है केवल उनकी सेवाएं एक औपचारिकता पूर्ण रह गई है और एक बडा लाभ प्रबंध संचालक श्री राजेश गोवर्धन द्वारा उठाया जा रहा वैसे भी बताया जाता है कि इस वर्ष के अंत मे उनका रिटायरमेंट है इसलिए सारे नियम कानून को दर किनार कर केवल उनका अर्थ लाभ वाला एक सूत्रीय कार्यक्रम बगैर खौफ के जारी है इसके लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपनए जा रहे है जिनमे सामग्री क्रय में भी एक बड़ा खेल उनके द्वारा खेला गया है जैसा कि ऊपर में बताया जा चुका है कि किस तरह बिल प्रस्तुत कर निगम के ही उन कार्य स्थलों से सामग्री खनन करवा कर आक्सिजोन में डलवाया गया जहां पूर्व में निगम द्वारा कार्य सम्पन्न करवाया जा चुका है और फर्जी तरीके से अपने ही चहेते ठेकेदार से बिल बनवा कर लाखों की बड़ी रकम गबन कर लिया गया जबकि सामग्री क्रय कहीं से भी नही हुआ कार्य आदेश भी बकायदा जारी कर दिए गए और लाखों करोड़ों की एक बड़ी राशि का फर्जीवाड़ा का खेल कर दिया गया सवाल उठाया जा रहा है कि 2019 में सात एकड़ भू भाग में दूसरी बार प्रारंभ हुए आक्सिजोन निर्माण के लिए नियमानुसार समाचार पत्रों में बकायदा विज्ञापन जारी कर निविदा आमंत्रण क्यो नही किया गया केवल अपने पूर्व के चहेते ठेकेदारों से औपचारिक आवेदन मंगा कर उनके प्रस्तुत पत्र में ही कार्य आदेश जारी क्यो कर दिया गया यानी छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम के प्रबंध संचालक श्री राजेश गोवर्धन अपने पद,पॉवर, और पहुंच का पूरा लाभ उठाते हुए मनमाने रूप से गड़बड़ घोटाला, और भ्रष्टाचार, को अंजाम देने में कोई कोर कसर नही छोड़ रहे है उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती सरकार के समय प्रारंभ हुए आक्सिजोन निर्माण के लिए प्रारंभिक जारी बजट जो लगभग 13 करोड़ से ऊपर बताई गई थी तथा चुनाव पूर्व से ही कार्य बंद कर दिया गया था जो लगभग साल भर बंद रहा केवल छुटपुट व्यवस्थापन एवं मेंटनेंस कार्य होते रहे परन्तु 2019 अगस्त माह के पश्चात नई कांग्रेस सरकार द्वारा 7 करोड़ का अतिरिक्त बजट सात एकड़ भूमि के।लिए जारी किया जबकि निगम के पूर्व पदस्थ अधिकारी यह कहते रहे कि आक्सिजोन निर्माण में पांच से सात करोड़ ही व्यय हुआ है शेष राशि का उपयोग भविष्य में किया जाएगा परन्तु क्या ये वही शेष राशि से 7 एकड़ भूमि में आक्सिजोन में निर्माण किया जा रहा है या शेष राशि भी बंदरबांट हो गई ? यह सवाल अब भी लोगों के मस्तिष्क में घूम रहा है आक्सिजोन निर्माण को लगभग तीन वर्ष होने जा रहा है परन्तु छग वन विकास निगम ने कार्यों में लागत राशि से लेकर वृक्षों और रोपे गए पौधों की संख्या किस प्रजाति आदि का विवरणी बोर्ड लगाना तक उचित नही समझा जो निगम को और संदेह के दायरे में लाकर खड़ा करता है यदि विवरणी बोर्ड सहित लागत राशि का उल्लेख किया जाता तो कहीं इनके भ्रष्ट गड़बड़ घोटाला का भंडाफोड़ हो जाता इसलिए भी आक्सीजोन में किसी प्रकार का बोर्ड इत्यादि नही लगाया जबकि सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि आक्सिजोन में लगाए जाने वाले पौधे दस रुपये में खरीदी कर के अपने घर मे काली मिट्टी और पॉलीथिन बैग में भरकर उसे चालीस रुपये से ऊपर खरीदी करना बता कर राशि भुगतान करवाया गया है जिसमे ही लाखों का खेल हुआ है वही यह बात भी चर्चा में है कि विभाग की चार पहिया वाहन (गाड़ियां) जिनकी संख्या तीन से चार है तथा जो विभाग के कर्मचारियों के लिए उपलब्ध होती है उसका उपयोग पुत्र, सहित पुत्रवधु, पत्नी, एवं एक गाड़ी स्वयं के लिए कर रहे है जो नियम के विरुद्ध है चर्चा इस बात को लेकर भी जोरो पर है कि अपने पुत्र को एक आला प्रशासनिक अधिकारी के स्पोर्ट से निगम के ही देवेंद्र नगर स्थित बारनवापारा परियोजना मण्डल कार्यालय क्षेत्रीय महाप्रबंधक कार्यालय के बगल में बांस शिल्प मिशन का एक कार्यालय स्थापित करवा कर दे दिया गया जबकि बताया जाता है कि इसके लिए सर्व प्रथम ट्रेनिंग ली जाती है पश्चात अनेक जटिल प्रक्रिया से गुजरने के पश्चात शासन द्वारा ऐसे बांस शिल्प कार्यालय खोलकर दिया जाता है जिसके लिए विभाग की ओर से मद होता है जिसे श्री गोवर्धन ने अपने पुत्र के लिए लगभग 25 लाख रुपये जारी करवा दिया जबकि पुत्र को कहीं भी इसकी ट्रेनिंग नही दी गई बावजूद इसके उसे निगम से बकायदा पेमेंट भी जारी किया जा रहा है तथा ऑफिस आने जाने के लिए विभागीय गाड़ी भी दे दिया गया जबकि ज्ञात हुआ है कि उनके पुत्र द्वारा यदाकदा ही ऑफिस आना बताया गया है अब देखा जाए तो निगम के पैसों का वन विकास निगम के एम डी राजेश गोवर्धन द्वारा किस तरह दुरुपयोग किया जा रहा है यह उसकी एक मिसाल है जहां आवक कौड़ी का नही और लाखों लगाकर गड़बड़ घोटाला करने का एक साधन मुहैया करा दिया गया
आक्सिजोन निर्माण में सर्वाधिक चर्चा इस बात को लेकर जोरो पर है कि एक व्यक्ति जो ठेकेदार है उसके द्वारा ही संपूर्ण आक्सिजोन में सभी प्रकार के सामग्री सप्लाय किया गया है जिसमें आक्सिजोन में लगने वाली निर्माण सामग्री जैसे रेती,ब्रिक्स,गिट्टी मुरुम, सीमेंट, जेसीबी मशीन, तथा लोहे की बाहरी जाली से लेकर उसमें लगने वाला भाला(एरो) तक कि सप्लाई कथित ठेकेदार द्वारा किया जाना बताया जा रहा है जिसके कुछ बिल बाउचर एवं कार्यादेश की कॉपी सूचना के अधिकार में आवेदक को प्रदाय की गई है जिसमे यह दर्शाता है कि सभी कार्यों का ठेका मानों एक ही ठेकेदार को दे दिया गया जबकि वन अधिनियम के नियमानुसार प्रत्येक कार्यों के लिए पृथक निविदा कॉल कर उन निविदाकारों से निर्माण सामग्री सप्लाय किया जाता जिनके फर्म कंपनी का सबसे कम दर पर कोटेशन प्राप्त हुआ हो उस निविदाकार को ही कार्यादेश जारी कर कार्य अथवा लगने वाली निर्माण सामग्री सप्लाय करवाया जाता है परन्तु आक्सिजोन ही एक ऐसा निर्माण स्थल है कि जहां वर्ष 2017 में काली मिट्टी, बाउंड्री पर लगने वाले जाली, मुरुम, ब्रिक्स, पेवर्स ब्लॉक के लिए निविदा बुलाया गया था परन्तु 12 एकड़ कार्य होने के पश्चात कार्य बंद कर दिया गया नवम्बर 2018 में 7 एकड़ भूमि में पुनः कार्य प्रारंभ किया गया परन्तु उक्त सात एकड़ भूमि में कार्यों को लेकर किसी प्रकार की कोई निविदा बुलाई नही गई केवल उसी एक ठेकेदार को कार्य आदेश जारी कर कार्य प्रारंभ कर दिया गया जिसके द्वारा प्रारंभ से लेकर लगातार तीन वर्षों तक एक ही व्यक्ति से समस्त कार्य लिया जा रहा है यहां तक निर्माण से लेकर सामग्री सप्लाय भी उसी से क्रय किया जा रहा है बताते चले कि 90 हजार 999 रु. अर्थात एक लाख रुपये तक कार्य करवाए जाने का अधिकार बगैर निविदा बुलाए मंडल प्रबंधक को होता है परन्तु उपरोक्त राशि से ऊपर होने पर दैनिक समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी कर निविदा बुलाना अति आवश्यक हो जाता है तथा भिन्न भिन्न अल्प दर कोटेशन प्रदाय वाले ठेकेदारों के माध्यम से सामग्री सप्लाय से लेकर निर्माण कार्य संपन्न कराया जाता है परन्तु आक्सिजोन में सारे नियम कानून की धज्जियां उड़ाते हुए प्रबंध संचालक राजेश गोवर्धन द्वारा प्रदेश के सभी मंडल कार्यालयों से ट्रक, जीप, एवं ट्रेक्टर, आदि को मंगा कर मुरुम, काली मिट्टी,रेत,गिट्टी बजरी, ब्रिक्स, सहित सभी निर्माण सामग्री परिवहन कर केवल उपरोक्त वाहन में पेट्रोल डीजल लगाकर कार्य सम्पन्न करवाया जा रहा है यहां तक प्रदेश के अनेंक परिक्षेत्र स्थलों से विभागीय कर्मचारियों जैसे चौकीदार, नियमित अनियमित श्रमिक मजदूरों को भी यहां आक्सिजोन में लगाकर कार्य लिया जा रहा है तथा मजदूरों के नाम से फर्जी बिल बनाकर लाखों का वारा न्यारा किया जा रहा है जो सामग्री सप्लाई से लेकर वाहन,और विभागीय फील्ड में कार्य करने वाले कार्यरत मजदूरों को आक्सिजोन में कार्य पर लगा कर किसी बड़े फर्जीवाड़ा करने की ओर सीधे इशारा करता है सूचना के अधिकार से प्राप्त दस्तावेजों में दर्शित निर्माण सामग्री काली मिट्टी और मुरुम सप्लाय की आवेदक द्वारा पड़ताल किया गया तो बड़े चौकाने वाले तथ्य सामने आए वन विकास निगम द्वारा मुरुम का कार्य आदेश एवं बिल जो प्राप्त हुआ है उसके अनुसार क्र./ व वि.नि.भंडार/2019/2509/ के द्वारा रायपुर क्षेत्रीय महा प्रबंधक रायपुर के पत्र क्रमांक 697 के 03/08/2019/ के तहत स्वीकृति दिनांक/18/09/2019 को श्री रामेश्वर प्रसाद सिन्हा उर्फ गुल्लू नूरानी चौक राजातालाब के नाम से 700 घन मीटर मुरुम 230 रुपये प्रति घन मीटर की दर से क्रय करना बताया गया जो कहीं से क्रय तो नही किया गया अलबत्ता वन विकास निगम के द्वारा 2017 हरियर छग योजना अंतर्गत नव निर्मित ग्राम सांकरा स्थित आक्सिजोन से स्वयं निगम के वाहन से परिवहन कर ई ए सी कॉलोनी स्थित आक्सिजोन में गिराया गया तथा रामेश्वर प्रसाद सिन्हा के बिल इनवॉइस नम्बर 107 दिनांक 30/09/2019/ को प्रस्तुत बिल जिसमे 457 घ.मि. मुरुम 219 .04 की दर से समस्त जी. एस. टी. एवं एस.जी. एस. टी. कर लगा कर लगभग 84 हजार 085 रु वन विकास निगम से प्राप्त करना बताया अब बताते चले कि जी एस टी जैसे कर के नाम पर राशि तो काटी जाती है परन्तु वह कितना राज्य शासन के खाते में समायोजन होता है यह तो ऊपर बैठे अधिकारी ही इसकी सत्यता बता सकते है जी एस टी के नाम पर भी अधिकारी गड़बड़झाला करने में तनिक भी संकोच नही करते जबकि समस्त प्रस्तुत बिल में परीक्षण अधिकारी द्वारा वेरीफाइड अंकित कर सील मुहर हस्ताक्षर अंकित करता है परन्तु कुछ बिल ही परीक्षण अधिकारी द्वारा वेरीफाइड (सत्यपित) किया हुआ है बाकी बिल वेरीफाइड नही हुए इसका मतलब साफ है कि बाकी के कई बिल सन्देह के दायरे में है जिसके द्वारा फर्जी बिल प्रस्तुत कर फर्जीवाड़ा किया गया है अब जिस ठेकेदार द्वारा फर्जी बिल प्रस्तुत किया गया है वह तो फ़ंसेगा ही साथ ही विभागीय संलिप्त कर्मचारियों को भी सलाखों के सींखचों के पीछे जाने से कोई रोक नही सकता वही काली मिट्टी के लिए जारी कार्यादेश वन विकास निगम के पत्र क्रमांक / व.वि.नि./भंडार/2019/2356/ श्री नरेन्द्र सोनी बिल्डिंग मटेरियल एवं स्टेशनरी सप्लायर सोनार पारा खैरागढ़ राजनांदगांव के नाम मण्डल प्रबंधक बार परियोजना मण्डल के द्वारा क्षेत्रीय महाप्रबंधक रायपुर के पत्र क्रमांक 697- दिनांक 03/08/2019/ के पत्र को स्वीकृति प्रदान कर दिनांक /03-09/2019 /को कार्य आदेश जारी किया तथा उपजाऊ काली मिट्टी 1500 घन मीटर 133.99 रुपये की दर से परिवहन करने के लिखित प्रमाण मिले है परन्तु काली मिट्टी पहले ग्राम फुंडहर के किसी खुले प्लाट से निगम के वाहन से परिवहन कर लाया गया जिसे किसी प्रकार का भुगतान जारी नही किया गया उसके पश्चात नया रायपुर के ग्राम तूता स्थित पुरानी नर्सरी से काली मिट्टी खनन कर ई ए सी कॉलोनी स्थित आक्सिजोन में डाला गया और उसका बिल भी अपने चहेते ठेकेदार से ही बनवाया गया जो सूचना के अधिकार में आवेदक को प्रदान किया गया यही नही मुरुम और काली मिट्टी खनन में प्रयुक्त जे सी बी मशीन का मय ईंधन किराया क्रमशः ग्राम तूता में पांच हजार एवं सांकरा आक्सिजोन में मुरुम खनन हेतु छ हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जारी किए गए दोनों स्थानों में पृथक भुगतान के संदर्भ में बताया गया कि रायपुर से जे सी बी मशीन जाता था जो पेट्रोल डीजल ईंधन के अलावा दिन भर में आठ से दस ट्रिप मुरुम परिवहन किया जा सके जबकि नया रायपुर स्थित ग्राम तूता में काली मिट्टी खनन हेतु समीप ग्राम से जेसीबी मशीन बुलवाई जाती थी इसलिए उसे पांच हजार रुपये की दर से निगम द्वारा भुगतान जारी किया गया मजेदार बात यह है कि नर्सरी के जिस स्थान पर काली मिट्टी खनन किया गया उक्त स्थल को ई ए सी कॉलोनी के सात एकड़ भूभाग से खनन किए गए तालाब से निकाली हुई गीली मिट्टी से पाट कर समतल करने का प्रयास किया गया ताकि निगम द्वारा हो रहे गड़बड़ी,घोटाले, और भ्रष्टाचार को ढांका जा सके इसके अलावा जिन स्थानों से मुरुम काली मिट्टी एवं रेत बजरी का परिवहन स्वयं निगम के गाड़ी से किया गया ताकि परिवहन का अलग बिल भुगतान कर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा सके इसके पूर्व भी 11 एकड़ आक्सिजोन निर्माण काल में एक बड़ा गड्ढा खोदकर तालाब बनाया गया था जहां जल भराव कर पत्थरों से चारों ओर से बंद कर दिया गया था ग्रीष्म ऋतु में उक्त तालाब की स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती है तथा पेड़ पौधे भी अपनी हरियाली युक्त आभा खोकर सूखे पतझड़ की स्थिति में पहुंच जाते है ऐसे में तालाब खोदकर आसपास के पेड़ पौधों को नमी पहुंचाने की परिकल्पना सार्थक नही लगती फिर भी प्रबंध संचालक राजेश गोवर्धन द्वारा आक्सिजोन में बड़े बड़े गड्ढे नुमा तालाब निर्माण करवाने के पीछे की मंशा अन्य निगम द्वारा सम्पन्न किए गए कार्य स्थलों से लाए जा रहे उपजाऊ काली मिट्टी और मुरुम के लिए निगम द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के गड्ढे को पाटना लगता है ताकि भविष्य में इस कृत्य की खबर किसी को न लगे तथा इसकी आड़ में लाखों की रकम डकारा जा सके
आगे के भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी की बानगी के रूप में छग राज्य वन विकास निगम से जारी कार्य आदेश पत्र दिनांक 07/11/2019/ को पत्र क्र./व.वि. नि./भंडार/2019/3176/ द्वारा श्री रामेशबर प्रसाद सिन्हा नूरानी चौक राजातालाब को ग्रिल बाउंड्री में भाला प्रदाय सहित लगाने हेतु प्रति नग भाला 92 रुपये की दर सहमति के आधार पर 500 ग्राम 2.50 मीटर ऊंचाई वाले 3500 नग भाला प्रदाय तथा लगाने की स्वीकृति दिनांक 07/11/2019/ को प्रदान कर कार्य आदेश जारी किया गया था परन्तु छग राज्य वन विकास निगम से प्राप्त दस्तावेज में प्रदत भाला एवं फिटिंग सहित 92 रुपये की दर से 3500 नग भाला 322000/ रुपये होती है परन्तु उसे 100 रुपये की दर से क्रय करने पर 350000 हो गया जो लगभग 28000 अधिक भुगतान किया गया अब यह भुगतान किसकी जेब मे गया जबकि भाला लगाने का कार्य व वि नि के द्वारा कार्य आदेश दिनांक 07/11/2019/ जारी करने के लगभग नौ माह से लेकर साल भर पूर्व अर्थात 2018 में ही लगाया जा चुका था फिर निगम द्वारा सात नवंबर 2019 में किस आधार पर रामेश्वर प्रसाद सिन्हा को किस स्थान के ग्रिल बाउंड्री में भाला लगाने का कार्य आदेश जारी किया गया ? जबकि जिस 500 ग्राम वजन के भाला लगाने का आदेश जारी किया गया वह खोखला सांचे में ढला हुआ भाला है जिसका वजन भी मात्र 200 से लेकर 300ग्राम के अंदर है जीस बाजार मूल्य 40 से पचास रुपये बताई जा रही है तो फिर विभाग द्वारा ठेकेदार से 100 रुपए किस आधार पर क्रय किया गया ? इसमें सीधा सीधा भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी की बू आ रही है यही नही रामेश्वर प्रसाद सिन्हा को व वि नि के पत्र क्रमांक 2323 में क्षेत्रीय महाप्रबंधक रायपुर के पत्र क्र.697 के दिनांक 03/08/2019/ को भूमि समतली करण हेतु 695 रुपये प्रति घण्टे की दर से डीजल सहित जे सी बी मशीन के लिए दिनांक 29/08/2019/को कार्यादेश स्वीकृति जारी किया गया जिसके लिए रामेश्वर प्रसाद सिन्हा के द्वारा इनवॉइस नम्बर 133 के दिनांक 04/11/2019/ को जे. सी. बी. क्रमांक 3921 के द्वारा खुदाई एवं लेबलिंग कार्य हेतु प्रस्तुत बिल में 445 घन्टे कार्य का 588 रु 98 पैसे की दर से तीन लाख नौ हजार दो सौ पचहत्तर रुपये भुगतान बिल प्रस्तुत किया गया वही दूसरा बिल इनवॉइस नम्बर 134 दिनांक 04/11/2019/ को जे. सी. बी.क्रमांक सी. जी. 04 डी. बी. 4325 के द्वारा 471.36 घण्टे कार्य 588.98 प्रति घण्टे की दर से 3.27595-20 तीन लाख सत्ताईस हजार पांच सौ पंचयानबे रुपये का भुगतान बिल प्रस्तुत किया गया इस हिसाब से देखा जाए तो क्या प्रतिदिन दोनों जेसीबी मशीन में 6 से 7 घण्टे के हिसाब से अनवरत कार्य लिया गया ? दो माह यानी उपरोक्त दर्शित तिथि अनुसार अर्थात 60 से 64 दिन में 6 से 7 घण्टे का कार्य सम्पन्न कराया जाना बताया गया क्योंकि प्रस्तुत बिल के अनुसार यही आंकड़ा आता है परन्तु देखा जाए तो अनवरत जेसीबी मशीन का उपयोग नही हुआ है केवल दो घण्टे से लेकर दिन भर में बमुश्किल चार घण्टे ही जे सी बी का उपयोग हुआ है तो फिर लाखों का भुगतान किस आधार पर किया गया वह भी वन विकास निगम के स्वीकृत दर 695 रु प्रति घण्टे के हिसाब से भुगतान होने की बजाए लगभग 588.98 रु यानी लगभग 600 रु की अल्प दर से भुगतान बिल को प्रस्तुत किया गया जिसमे वविनि द्वारा स्वीकृत दर से लगभग एक सौ ग्यारह 111 रुपये का अंतर हो रहा है जो बात लोगों के गले नही उतर रही है यह आंकड़ा तो केवल दो माह का ही है जिसमे लगभग 6 लाख 36 हजार का बिल भुगतान किया गया जबकि आज दिनांक लगभग तीन माह का जेसीबी मशीन का भुगतान कितना होगा यह सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है तथा इसमें कितनी बडी कमीशन खोरी हुई है यह भी स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है क्योंकि अधिकांश समय जेसीबी मशीन केवल आक्सिजोन कार्य स्थल में शोभा बढ़ाने खड़ी रहती है गाहे बगाहे सामग्री लाए गए वन विकास निगम के ट्रक, ट्रेक्टर गाड़ी से मुरुम काली उपजाऊ मिट्टी, रेती, बजरी गिट्टी, इत्यादि लोडिंग अनलोडिंग करते देखा जा सकता है फिर जेसीबी को इतना भुगतान क्यों किया जा रहा है जिसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि यह सब निगम के उच्च अधिकारी प्रबंध संचालक श्री राजेश गोवर्धन एवं आर जी एम सोमादास मैडम का बहुत ही सुनियोजित ढंग से भ्रष्टाचार गड़बड़ घोटाला, और कमीशनखोरी करने का षड्यंत्र है जो अर्थ लाभ के लिए वन विकास निगम की नींव को पूरी तरह से खोखला करना चाहते है जिसका शनै शनै भंडाफोड़ हो रहा है एक बात तो यह स्पष्ट हो गया है कि प्रबंध संचालक राजेश गोवर्धन की अब जाती बिराती बेला है वो तो भ्रष्टाचार करके अपना बोरिया बिस्तर समेट लेंगे परन्तु परेशानी उस आने वाले अधिकारी के लिए छोड़ जाएंगे जो केवल उनके द्वारा किए गए बड़े बड़े गड्ढे ही पाटते रहे लोगो को इस बात से भी अचरज एवं हैरानी है कि इतने बड़े पैमाने पर होने वाले गड़बड़, घोटाला, और भ्रष्टाचार करने वाले प्रबंध संचालक राजेश गोवर्धन पर कार्यवाही क्यों नही ? ऐसे बड़े पैमाने पर हो रहे भ्रष्टाचार,घोटाले,फर्जीवाड़ा,और गड़बड़झाला की तो जांच किसी उच्च स्तरीय जांच कमेटी के द्वारा कराया जाना चाहिए परन्तु बताते चले कि आक्सिजोन निर्माण 2017 में प्रारंभिक काल से ही श्री राजेश गोवर्धन को तात्कालिक मुख्य वन सचिव का वरदहस्त प्राप्त था जो एक ही समय मे साथ-साथ पढ़ाई की जो अब भी..... ये दोस्ती हम नही तोड़ेंगे....तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे ...की तर्ज पर चल रही है ....अपने इस बाल सखा श्री गोवर्धन को उपरोक्त वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के द्वारा ही के सी यादव साहब के रिटायरमेंट पश्चात लाए जबकि इसके पूर्व भी प्रबंध संचालक के अतिरिक्त प्रभार पर रहते हुए तात्कालिक अध्यक्ष श्री निवास राव मद्दी के साथ मिलकर करोड़ों की राशि गड़बड़ घोटाला भ्रष्टाचार करके अर्जित की संविदा नियुक्ति से लेकर भर्ती तक मे बड़ा लेन देन हुआ यहां तक सी एस आर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी)अर्थात औधौगिक सामाजिक दायित्व जैसे अनेक महत्वाकांक्षी योजनाओं की राशि में फर्जीवाड़ा कर अपने सीनियर अधिकारी को फंसाने और उलझाने का कुत्सित षड्यंत्र भी इनके द्वारा किया गया और अर्थ लाभ के उद्देश्य से निगम को चारागाह बना लिया जबकि वन विकास निगम में वर्षों से रिक्त पड़े सचिव पद सहित अन्य पदों पर किसी भी अधिकारी की नियुक्ति तक नही होने दिया न ही शासन को पत्र लिख कर इस से अवगत कराने की कोशिश की गई औपचारिक रूप से इंटरनेट में विज्ञापन जारी कर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया यदि वन विकास निगम में सचिव पद की नियुक्ति हो गई तो प्रबंध संचालक का सारा पॉवर स्वमेव नगण्य हो जाएगा और किसी भी योजना का क्रियान्वयन अर्थ बजट सचिव के सही हस्ताक्षर से ही जारी हो सकेंगे परन्तु श्री गोवर्धन ने अपना पद और पॉवर बरकरार रखने के लिए अपनी मनमानी और तानाशाह रवैय्ये को अपनाकर सब लंबित रखा नियम कानून की घज्जियाँ उड़ाते हुए शासन पर तात्कालिक मुख्य वन सचिव पद पर बैठे मित्रवत व्यवहार,और प्रोत्साहन ने उनके मर्म मस्तिष्क से समस्त भय को काफूर कर दिया और उनके द्वारा खुलकर मनमानी किया जाने लगा इसलिए स्वयं अतिरिक्त प्रबंध संचालक के प्रभारी पद में रहकर अपने पद का मनमाना दुरुपयोग के चलते एक अपरिपक्व जूनियर आई एफ एस अधिकारी सोमादास मैडम को अपर प्रबंध संचालक सहित तीन अन्य परियोजना मंडलों का क्षेत्रीय महाप्रबंधक (आर जी एम) का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा कर अनेक फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार घोटालों को अंजाम दिया गया हालांकि निगम में ही कई ईमानदार कर्तव्य निष्ठ परिपक्व सुलझे हुए आई एफ एस अधिकारी भी मौजूद है तथा वन विभाग से निगम में हो रहे भ्रष्टाचार घोटालों को देखकर कोई भी आई एफ़ एस अधिकारी यहां आना नही चाहता तथा श्री गोवर्धन ने भी शासन से लिखित में किसी आई एफ एस अधिकारी की नियुक्ति की मांग के लिए कोई पत्र आज तक नही लिखा जिससे रिक्त पदों की भरपाई हो सके ऐसे में उस समय अनुभवहीन सोमादास मैडम की नियुक्ति कर पूरी तरह निगम की आर्थिक जड़ों को खोखला कर दिया यदि इस ओर शासन अब भी जांच बैठाए तो कई बड़े तथा चौकाने वाले करोड़ो राशि के घोटाले सामने आ सकते है खैर, यह भी ज्ञात हुआ कि जिन आई एफ एस अधिकारी का छग वन विकास निगम में प्रबंध संचालक पद के लिए नियुक्ति लगभग हो चुकी थी परन्तु इन्ही बड़े साहब ने मुख्यमंत्री को सिफारिश करके श्री गोवर्धन को पुनः छग राज्य वन विकास निगम में एम डी की कुर्सी में नियुक्ति दिलाई यह तो सब जानते है कि... सैय्या भयो कोतवाल ...तो अब डर काहे का..की तर्ज़ पर प्रबंध संचालक श्री राजेश गोवर्धन सारे पैतरे आजमा कर जितना समेटना हो समेट कर निगम को अलविदा करना है इसके चलते ही उनके द्वारा भ्रष्टाचार गड़बड़ घोटाला को निर्भय होकर अंजाम दिया जा रहा है आक्सिजोन में बिजली फिटिंग से लेकर मेसर्स पद्मावती रियालिटिस फरिश्ता कॉम्प्लेक्स रायपुर को पत्र क्रमांक 2321 के दिनांक 29/08/2019/में राजस्थानी ट्रेक्टर किराया के कार्यादेश जारी कर देने मात्र से ये नही छुपाया जा सकता कि भ्रष्टाचार नही हुआ क्योंकि बाहरी ट्रेक्टर को आक्सिजोन में लगाया ही नही गया सभी वाहन लगभग छग राज्य वन विकास निगम के द्वारा अपने मण्डल कार्यालय से बुलाकर कार्य स्थल में सेवाएं ली जा रही है या जारी कार्य आदेश के अनुसार निर्धारित मानदण्डों के अनुरूप मंगाई जाने वाली बजरी गिट्टी 500 घन मीटर के स्थान पर 569.35 घन मीटर का बढ़ाया हुआ भुगतान वह भी ठेकेदार द्वारा निर्धारित दर से कम में लेने से ही भ्रष्टाचार उजागर हो जाता है कि निगम वही रेती गिट्टी टी एम टी क्रय इत्यादि में जारी किए गए राशि से भी कम दर पर भुगतान पाया गया है अब एक ठेकेदार द्वारा प्रस्तुत भुगतान बिल को निगम द्वारा जारी निर्धारित राशि से कम राशि से भुगतान लेना बात कुछ गले नही उतर रही है जबकि देखा यह गया है कि ठेकेदार द्वारा अधिक राशि की लालसा में अतिरिक्त गड़बड़ी कर राशि बढ़ाया जाता है एवं आर्थिक लाभ उठाया जाता है परन्तु यहां ठीक विपरीत ठेकेदार द्वारा निगम से निर्धारित प्राप्त कोटेशन की जारी दर से भी कम दर पर भुगतान बिल प्रस्तुत किया है इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि या तो उतना निर्माण सामग्री आया ही नही जितने का बिल प्रस्तुत किया गया या फिर फर्जी बिल प्रस्तुत करके घोटाले की लीपा पोती करने की कुत्सित मानसिकता के साथ आवेदक को गुमराह करने का सीधा सा प्रयास है वैसे भी बगैर प्रोजेक्ट तैयार कर कार्य को अमलीजामा पहनाने में भ्रष्टाचार,गड़बड़ घोटालोंऔर फर्जीवाड़ा करने की आशंका बढ़ जाती है तब अपने ऐसे कृत्य छुपाने के उद्देश्य से इस प्रकार के फर्जी बिल का आवरण लपेट कर शासन और जनता को गुमराह करने का प्रयास है जो भविष्य में उनके स्वयं के लिए खतरनाक साबित हो सकता है लोगों में विशेष कर इस बात को लेकर भी चर्चा गर्म है कि एम डी राजेश गोवर्धन के साथ साथ रिटायरमेंट होने वाले एक प्रशासनिक स्तर पर बैठे वरिष्ठ अधिकारी अपनी दोस्ती यारी निभाने के फेर में आंख मूंदे हुए है और उन्हें भ्रष्टाचार घोटाला,,गड़बड़झाला, और फर्जीवाड़ा करने की खुली छूट दे रखी है समाचार पत्रों में लगातार भ्रष्टाचार,घोटाले और फर्जीवाड़े का समाचार प्रकाशित होने तथा उन्हें इसकी समस्त जानकारी और शिकायत मिलने के बावजूद छग वन विकास निगम के एम डी राजेश गोवर्धन पर किसी प्रकार की विभागीय कार्यवाही न करना ऐसा ज्ञात होता है कि सब गड़बड़ घोटाला, और फर्जीवाड़ा, भ्रष्टाचार, इनके ही शह पर हो रहा है सवाल उठाया जा रहा है कि क्या दोस्ती यारी रिश्तेदारी निभाने के फेर में ये कब तक शासन को आर्थिक क्षति पहुंचाने में सहयोग करते रहेंगे या छग राज्य वन विकास निगम की लुटिया डूबाने की सौगंध दोनों अधिकारियों ने एक साथ ले रखी है अब यह तो ऊपर बैठे कर्मठ कर्तव्य निष्ठ अधिकारियों और विभागीय वन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर को विचार करना है कि वन विकास निगम के ऐसे भ्रष्ट अधिकारी श्री राजेश गोवर्धन के विरुद्ध उच्च स्तरीय जांच कमेटी के द्वारा कार्यवाही करवाना है या भविष्य में छग वन विकास निगम कार्यालय को तालाबंदी करवाना है बहरहाल, अगले अंक में पढ़िए छग राज्य वन विकास निगम के प्रबंध संचालक राजेश गोवर्धन के द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की अगली कड़ी जिसमे बहुत कुछ धमाकेदार होगा